हिन्दी उपन्यास का विकास
हिन्दी उपन्यास का विकास
द्वितीय उत्थान : प्रेमचन्द्र युग
मुंशी प्रेमचन्द्र (1880-1936 ई.) का मूलनाम धनपत राय था। किन्तु वे नाम बदलकर
'नवाब राय' बनारसी के नाम से लिखते थे।
धनपतराय को 'प्रेमचन्द्र' नाम उर्दू के लेखक दयानारायण निगम ने दिया था।
प्रेमचन्द्र को 'उपन्यास-सम्राट' की संज्ञा बंगला कथाकार शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय ने दिया था।
प्रेमचन्द्र द्वारा लिखे मूल उर्दू में उपन्यास का उनके द्वारा किया गया
हिन्दी रूपान्तर निम्नलिखित हैं-
मूल उर्दू उपन्यास
वर्ष
हिन्दी रूपान्तर
वर्ष
असरारे मआविद
1903-1905
देवस्थान रहस्य
1905
हमखुर्मा व हमसवाब
1906
प्रेमा अर्थात दो सखियों का विवाह
1907
किशना
1907
गबन
1931
जलवाए ईसार
1912
वरदान
1921
बाजारे हुस्न
1917
सेवासदन
1918
गोशाएँ आफियत
प्रेमाश्रय
गोशाएँ आफियत
1922
चौगाने हस्ती
रंगभूमि
1925
'असरारे मआविद' प्रेमचन्द्र का प्रथम उपन्यास है।
'सेवा सदन' प्रेमचन्द्र का पहला प्रौढ़ हिन्दी उपन्यास है।
प्रेमचन्द्र का हिन्दी में मूल रूप से लिखा प्रथम उपन्यास 'कायाकल्प' (1926) है।
सन् 1907 ई. में प्रेमचन्द्र ने 'रूठी रानी' नामक ऐतिहासिक उपन्यास की रचना की।
प्रेमचन्द्र के हिन्दी उपन्यास रचना क्रम के अनुसार निम्नांकित हैं-
देवस्थान रहस्य (1905)
मन्दिरों और तीर्थ स्थानों में फैले भ्रष्टाचार, पाखण्ड की आलोचना
प्रेमा (1907)
हिन्दुओं में विधवा-विवाह की समस्या का चित्रण
सेवा सदन (1918)
वेश्या जीवन से सम्बद्ध समस्या का चित्रण
वरदान (1921)
प्रेम एवं विवाह की समस्या का चिण
प्रेमाश्रम (1922)
औपनिवेशक शासन में जमींदार एवं किसानों के सम्बन्ध का चित्रण
रंगभूमि 1925
औद्योगीकरण के दोष, पूँजीवादियों की शोषण नीति, अंग्रेजों के अत्याचार एवं
भारतीय शिक्षितों की चरित्र-हीनता का विश्लेषण व चित्रण
कायाकल्प (1926)
पुनर्जन्म की धारणा पर समाज-सेवा, राजा के अत्याचार विलास
एवं सच्चे प्रेम का चित्रण
निर्मला (1927)
दहेज एवं अनमोल विवाह की समस्या का चित्रण
गबन (1931)
मध्यवर्गीय जीवन की असंगति का यथार्थ मनोवैज्ञानिक चित्रण
कर्मभूमि (1933)
हिन्दू-मुस्लिम एकता, अछूतोद्धार एवं दलित किसानों के उत्थान की कथा
गोदान 1936
किसान जीवन की महागाथा एवं ऋण की समस्या का अंकन
मंगलसूत्र 1948
अधूरा
प्रेमचन्द्र ने सन् 1929 ई. में 'प्रेमा' उपन्यास को संशोधित करके 'प्रतिज्ञा' शीर्षक
से प्रकाशित करवाया।
प्रेमचन्द्र ने 'आदर्शोन्मुख यथार्थवादी' उपन्यास लेखन की परम्परा का प्रवर्तन किया।
विश्वम्भरनाथ शर्मा 'कौशिक' ने तीन उपन्यासों की रचना की-
उपन्यास
वर्ष
विषय
माँ
1929
माँ की महिमा एवं आदर्श का प्रतिपादन
भिखारिणी
1929
अन्तर्जातीय विवाह की समस्या एवं प्रेम की त्रासदी का चित्रण
संघर्ष
1945
आर्थिक विषमता के कारण प्रेम की निष्फलता का चित्रण
शिवपूजन सहाय ने सन् 1926 ई. में 'देहाती दुनिया' शीर्षक से एक उपन्यास की रचना की।
डॉ. गोपाल राय के अनुसार 'देहाती दुनिया' एक आंचलिक उपन्यास है।
चंडी प्रसाद 'हृदयेश' ने भावपूर्ण आदर्शवादी शैली में 'मनोरमा (1924) और 'मंगल प्रभात'
(1926) उपन्यास की रचना की।
पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र ने सर्वप्रथम हिन्दी उपन्यास में पत्रात्मक प्रविधि का प्रवर्तन किया।
पत्रात्मक प्रविधि में प्रथम उपन्यास बेचन शर्मा 'उग्र' ने 'चंद हसीनों के खतूत' (1927)
शीर्षक से लिखा।
'विशाल भारत' पत्रिका के सम्पादक बनारसीदास चतुर्वेदी ने बेचन शर्मा 'उग्र' के उपन्यासों को
'घासलेटी साहित्य' कहा था।
बेचन शर्मा 'उग्र' ने निम्न उपन्यासों की रचना की है-
उपन्यास
वर्ष
विषय
चंद हसीनों के खतूत
1927
हिन्दू-मुस्लिम के प्रेम एवं विवाह का चित्रण
दिल्ली का दलाल
1927
युवतियों का क्रय-विक्रय करने वाली संस्थाओं का पर्दाफाश
बुधुआ की बेटी
1928
अछूतोद्धार की समस्या ('मनुष्यानंद' नाम से रूपांतरण)
शराबी
1930
वेश्याओं और शराब घरों का नग्न यथार्थ चित्रण
सरकारी तुम्हारी आँखों में
1937
शासन तंत्र की अव्यवस्था एवं प्रजा की पीड़ा का चित्रण
चाकलेट
1927
जी जी जी
1937
हिन्दू समाज की स्त्री की पीड़ा का चित्रण
फागुन के दिन चार
1960
जुहू
1963
प्रकृतिवादी उपन्यासों का जनक जोला को माना जाता है।
हिन्दी में प्रकृतिवादी उपन्यासों के जनक पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्र' को स्वीकार किया जाता है।
ऋषभचरण जैन प्रकृतिवादी शैली के उपन्यासकार हैं। इनकी प्रमुख रचनाएँ अग्रांकित हैं-
उपन्यास
वर्ष
उपन्यास
वर्ष
पैसे का साथी
1928
दिल्ली का कलंक
1936
दिल्ली का व्यभिचार
1928
चम्पाकली
1937
दिल्ली का व्यभिचार
1928
चम्पाकली
1937
वेश्या पुत्र
1929
हिज हाइनेस
1938
वेश्या पुत्र
1929
हिज हाइनेस
1938
मास्टर साहब
1927
मयखाना
1938
सत्याग्रह
1930
तीन इक्के
1940
रहस्यमयी
1931
दुराचार के अड्डे
1930
कुछ आलोचकों ने हिन्दी में प्रकृतिवादी या यथार्थवादी उपन्यास का
जनक जयशंकर प्रसाद को माना है।
प्रसाद के महत्वपूर्ण उपन्यास निम्न हैं-
कंकाल 1929
तत्कालीन समाज का यथार्थ नग्न चित्रण
तितली 1934
पूँजीपतियों द्वारा निम्नवर्ग का शोषण
इरावती 1936
अपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यास
आचार्य चतुरसेन शास्त्री को कुछ औपन्यासिक कृतियों के लिए प्रकृतिवादी उपन्यासकार
माना जाता है, जो निम्न हैं-
उपन्यास
वर्ष
विषय
हृदय की परख
1918
विवाह पूर्व प्रेम एवं अवैध सन्तान की समस्या चित्रण
हृदय की प्यास
1931
अमर अभिलाषा
1933
विधवाओं पर होने वाले अत्याचार का चित्रण
व्यभिचार
1924
प्रेम के अमर्यादित एवं अश्लील रूप का अंकन
आत्मदाह
1937
आजादी के लिए आन्दोलन एवं देश प्रेम का चित्रण
अनूपलाल मण्डल ने 'निर्वासिता' (1929), 'समाज की वेदी पर' (1931), 'साकी' (1932),
'रुपरेखा' (1934), 'ज्योतिर्मयी' (1934) उपन्यासों की रचना की।
अनूपलाल ने 'समाज की वेदी पर' एवं 'रुपरेखा' उपन्यास की रचना पत्रात्मक प्रविधि पर की।
अनूपलाल मण्डल के अन्य उपन्यास हैं- 1 मीमांसा (1937), 2. आवारों की दुनिया (1945),
3. दर्द की तस्वीरें (1945) और 4. बुझने न पाये।
सियारामशरण गुप्त गाँधीवादी विचारधारा के उपन्यासकार हैं। इनकी प्रमुख रचना हैं-
उपन्यास
वर्ष
विषय
गोद
1932
संदेह एवं अविश्वास के कारण स्त्री की समस्या एवं दर्द का चित्रण
अन्तिम आकांक्षा
1934
सामाजिक एवं धार्मिक विसंगति का चित्रण
नारी
1937
समकालीन हिन्दू स्त्री की असहायता एवं विवशता का चित्रण
प्रतापनारायण श्रीवास्तव भी गाँधीवादी (मानवतावादी) उपन्यासकार हैं। इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं-
विदा 1927
भारतीय एवं पाश्चात्य सभ्यता का समन्वय
विजय 1937
बाल विधवा समस्या का चित्रण
विकास 1938
उच्च वर्ग के विलासिता का चित्रण
राधिकारमण प्रसाद सिंह के महत्वपूर्ण उपन्यास हैं- 1. रामरहीम (1936), 2. पुरुष और नारी,
3. संस्कार (1942) और 4. चुम्बन और चाटा (1956)।
प्रेमचंद्र युग के अन्य महत्वपूर्ण रचनाकार एवं रचनाएँ-
जी. पी. श्रीवास्तव- 1. महाशय भड़ाम सिंह शर्मा (1919),
2. लतखोरीलाल (1931), 3 विलायती उल्लू (1932), 4. स्वामी चौखटानंद (1936),
5. प्राणनाथ (1925), 6. गंगा जमुनी (1927),
7. दिल की आग उर्फ दिल जले की आग (1932)।
मन्नन द्विवेदी 'गजपुरी'- कल्याणी (1921)
मदारी लाल गुप्त- 1. गौरीशंकर (1923), 2. सखाराम (1924),
3. मानिक मंदिर (1926)।
गिरिजादत्त शुक्ल 'गिरीश'- 1. सन्देह (1925), 2. प्रेम की पीड़ा (1930),
3. अरुणोदय (1930), 4. पाप की पहेली, 5. बाबू साहब (1932)।
प्रफुल्लचंद्र ओझा- 1. संन्यासिनी (1926), 2. पतझड़ (1930), 3. पाप और पुण्य (1930)
, 4. जेलयात्रा (1931), 5. तलाक (1932)।
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'- 1. अप्सरा (1931), 2. अलका (1933),
3. निरुपमा (1936), 4. प्रभावती (1936), 5. चोटी की पकड़,
6. काले कारनामे (1950)।
श्रीनाथ सिंह- 1. उलझन (1922), 2. क्षमा (1925), 3. एकाकिनी (1927),
4. प्रेम परीक्षा (1927), 5. जागरण (1937), 6. प्रजामंडल (1941),
7. एक और अनेक (1951), 8. अपह्रता (1952)।
भगवती प्रसाद वाजपेयी- 1. प्रेमपथ (1926), 2. अनाथ पत्नी (1928),
3. मुस्कान (1929), 4. प्रेम निर्वाह (1934), 5. पतिता की साधना (1936),
6. चलते-चलते (1951), 7. टूटते-बंधन (1963)।
डायरी प्रविधि का हिन्दी में प्रवर्तन आदित्य प्रसन्नराय के उपन्यास 'मुन्नी की डायरी'
से माना जाता है। इसका प्रकाशन सन् 1932 ई. में हुआ था।
हिन्दी में सहयोगी उपन्यास लेखन की शुरुआत सन् 1927 ई. में प्रकाशित भगवती
प्रसाद वायपेयी, वृन्दावनलाल वर्मा और शम्भू दयाल सक्सेना के उपन्यास 'त्रिमूर्ति' से माना जाता है।